दोस्तों आज मैं आपको 2013 में आए केदारनाथ में आपदा की पूरी सच्चाई आपको बताने जा रहा हूं।
14 मई 2013 को बाबा केदारनाथ के पास धूमधाम से खोले गए। इसके 1 महीने बाद भी श्रद्धालु ने बाबा केदारनाथ के धूमधाम से दर्शन किए। 15 जून 2013 से 3 दिनों से लगातार बारिश हो रही थी। ऐसी बारिश वहाँ के लोगों ने कभी नहीं देखी थी।

16 जून 2013 को केदारनाथ मंदिर में भारी भीड़ लगी हुई थी। केदारनाथ के आसपास बहने वाली नदियां उफान पर थी खास कर मंदाकिनी नदी। केदारनाथ के आसपास के पहाड़ो पर बादल फटना शुरू हो गया था। लेकिन बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। करीब रात्रि 8:30 बजे जोरदार लैंडलेस हुआ और मलवे के साथ-साथ पहाड़ो से तेज रफ्तार से पानी केदारनाथ की और बढ़ा।

रात के सन्नाटे में चारो तरफ चीख पुकार गुंजने लगी। रात भर गर्जना के साथ नदियां बहती रही। लोग चारों तरफ बचने के रास्ते खोज रहे थे। जोरदार बारिश के साथ बादल फट गयी और चारों तरफ पानी भर गयी। तेज रफ्तार से आते हुए मलावे, बड़े- बड़े पत्थर केदारनाथ की बस्ती की ओर तहस- नहस करते हुए निकल गया और पीछे से संकड़ो लोगो के मौत का मंजर छोड़ गया

जिसे देखकर रूह काफ जाती हैं। करीब 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 100m ऊंची पानी की लहरें मे सभी लोगो को बहा कर ले गया। रामबाड़ा मे उस समय 5- 6 हजार लोग मौजूद थे जिनका नामों निशान नहीं रहा। 5 से 10 मिनट में केदारनाथ धाम मिट्टी मे मिल गया।

यह मंजल इतना खतरनाक था कि इसे देखने वाले लोग पूरी तरह से भयभीत हो गए थे। 18 जून को जब बारिश थामी तो केदारनाथ धाम पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। पर्माथा निकेतन पर मौजूद शिव शंकर का मूर्ति पूरी तरह से डूब गयी थी। रास्ते भी पूरी तरह से टूट चुके थे।

19 जून 2013 रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो सका। हेलीकॉप्टर की मदद से लोगों को वहाँ से निकाला गया। बताया जाता है कि 12000 लोग मारे गए थे। केदारनाथ त्रासदी के अब 8 साल बीत चुके हैं। केदारनाथ मे अब बहुत बड़े स्तर पर विकाश का कार्य किया जा रहा हैं।